समाज ऋणी है इनका
शहीद बद्रीदान बारहठ
🙏
जन्मः 4 अगस्त 1959
वीरगतिः 10 अगस्त 1995
शहीदों की चिताओ पर लगेगें हर वर्ष मेले,, वतन पर मर-मिटने वालो का बस यही एक निशां होगा..
✍️ वर्दी, हौसले, जज्बे व शौर्य के प्रतीक शहीद बद्रीदान बारहठ ने 1995 मे आपरेशन रक्षक मे आतंकवादियो से लोहा लेते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
✍️ प्रारंभिक जीवनः शहीद बद्रीदान बारहठ का जन्म 4 अगस्त 1959 को गांव बैहचारणान , त. औसिया , जि. जोधपुर, राजस्थान में हुआ था । देशप्रेम के भाव उनमें जीवन के आरंभिक दिनों में ही उत्पन्न हो गए थे । प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे राष्ट्र सेवा के लिए 23 सितंबर 1979को सेना में भर्ती हो गए।
✍️ शहादतः जम्मू कश्मीर के राजौरी मे आतंकवादियो के खात्मे के लिए आपरेशन रक्षक चलाया गया । शहीद बद्रीदान बारहठ 113 eng.REMT.मे शामिल थे आतंकवादियो से मुठभेड के दौरान घात लगाकर किए हमले में इनका बंकर टूट गया। बंकर को पुनः व्यवस्थित करने के लिए वे साथी सिपाही के कवर फायर में बंकर के ऊपर चढे तभी मौका पाकर आतंकवादियो ने गोलियां चलाई जिसमें 10 अगस्त 1995 को बद्रीदान बारहठ वीरगति को प्राप्त हुए।
✍️ सामाजिक जीवनः शहीद बद्रीदान बारहठ बहुत आत्मीयता व समाज सेवी व्यक्ति थे उन्होंने गांव में श्री करणी मंदिर व राजकीय विधालय में पानी के नल की व्यवस्था करवायी थी और हिंगलाज माता के मंदिर के जीर्णोदार मे सहयोग दिया था वो जब छुट्टी पर आते थे तो अपने सेना के अनुभव गांव वालों के साथ साझा किया करते थे।
✍️ हैं अमर शहीदों की पूजा, हर एक राष्ट्र की परंपरा,
इनसे है माँ की कोख धन्य, इनको पाकर है धन्य धरा।
देशप्रेम, साहस और शौर्य की प्रतिमूर्ति शहीद बद्रीदान बारहठ ने राष्ट्र रक्षार्थ अपना सर्वोच्च बलिदान प्राणों की आहुति देकर संकल चारण समाज को गौरवान्वित किया। वो हमारी साझी धरोहर है लेकिन हमने उनको विस्मृत कर कृतघ्नता प्रकट की है। समाज के प्रबुद्धजनो ने विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करके व अपने को परिवार तक सीमित कर समाज के प्रति उदासीनता दिखाई है।समाज के गौरव की पुनर्स्थापना के लिए समाज के सभी संगठनों को समन्वित होकर प्रयास करने चाहिए। ताकि समाज की अस्मिता को पुनर्जीवित किया जा सके।🙏🙏
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